बिहार विधानसभा चुनाव 2025: जानिए वो 5 हॉट सीटें जहाँ मुकाबला सबसे ज़्यादा रोमांचक है!

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 हॉट सीटें

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कुछ सीटों पर मुकाबला बेहद रोमांचक हो गया है।
राजनीतिक विश्लेषक इन 5 हॉट सीटों को इस बार के चुनाव की सबसे बड़ी जंग मान रहे हैं।
जहाँ एक ओर एनडीए (भाजपा-जदयू) अपने गढ़ बचाने में जुटा है, वहीं विपक्षी महागठबंधन (राजद-कांग्रेस) इन सीटों पर सेंध लगाने की पूरी कोशिश कर रहा है।
मतदाताओं का मूड, प्रत्याशियों की रणनीति और स्थानीय मुद्दे — सब मिलकर इन क्षेत्रों को चुनावी चर्चाओं का केंद्र बना रहे हैं।
जानिए कौन-कौन सी हैं वो 5 हॉट सीटें, किन दिग्गजों की साख दांव पर लगी है और क्या कह रही है जनता की नब्ज़।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की 5 हॉट सीटें – जानिए कहाँ है सबसे ज़्यादा टक्कर!

बिहार की सियासत हर चुनाव में कुछ सीटों को खास बना देती है।
2025 के विधानसभा चुनाव में भी 5 ऐसी सीटें हैं जहाँ मुकाबला सिर-से-सिर का है और हर पार्टी इन इलाकों को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।

पटना साहिब – दिग्गजों की प्रतिष्ठा की सीट

राजधानी की सबसे हॉट सीट मानी जाने वाली पटना साहिब में
एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है।
यहाँ भाजपा के सीनियर नेता की साख दांव पर है, जबकि विपक्ष इस सीट पर बड़ी जीत दर्ज करने की कोशिश में है।
स्थानीय मुद्दे — विकास, सफाई और ट्रैफिक — इस बार के एजेंडे में शीर्ष पर हैं।http://अन्य चुनावी विश्लेषण पोस्ट्स जैसे “एनडीए उम्मीदवारों का धमाका 2025”

राघोपुर – तेजस्वी यादव का गढ़ या चुनौती?

राघोपुर: जो लंबे समय से राजद का मजबूत किला रहा है,
इस बार एनडीए ने यहाँ दमदार प्रत्याशी उतारा है।
तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका है।
युवाओं और किसानों के मुद्दे यहाँ निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

राघोपुर के मतदाताओं की राय: कई मतदाता विकास कार्यों की धीमी रफ्तार से नाराज़ हैं,
लेकिन यादव परिवार की पकड़ अब भी इस क्षेत्र में मजबूत मानी जा रही है।http://Election Commission of India

गया टाउन – एनडीए बनाम महागठबंधन की सीधी भिड़ंत

गया टाउन सीट पर इस बार जातीय समीकरण के बजाय विकास मुद्दे हावी हैं।
एनडीए के उम्मीदवार को शहरी वोटरों का समर्थन मिल रहा है,
वहीं महागठबंधन ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटा है।

स्थानीय मुद्दे:

  • शिक्षा संस्थानों का अभाव
  • रोजगार के अवसर
  • पेयजल और बिजली की समस्या

ये तीन मुद्दे मतदाताओं के बीच चर्चा में हैं।

दरभंगा – मिथिला की राजनीतिक धड़कन

दरभंगा सीट हमेशा से बिहार की राजनीति में खास रही है।
इस बार एनडीए और राजद दोनों ने अपने सबसे मज़बूत उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
यहाँ मुकाबला इतना नज़दीकी है कि हर वोट अहम हो गया है।

सोशल मीडिया पर चर्चा में दरभंगा

दरभंगा में युवाओं का झुकाव सोशल मीडिया कैंपेन से प्रभावित हुआ है।
एनडीए के प्रचार वीडियो और राजद के लोकगीत-कैंपेन ने यहाँ का माहौल गर्माया हुआ है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 हॉट सीटें
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 हॉट सीटें

मधेपुरा – पॉलिटिकल ‘हॉटस्पॉट’ की पहचान

मधेपुरा हमेशा से बिहार के चुनावी इतिहास में चर्चा का केंद्र रहा है।
इस सीट पर हर बार बड़े नेता चुनाव लड़ते हैं और इस बार भी वही कहानी दोहराई जा रही है।
जातीय समीकरणों, विकास मुद्दों और गठबंधन की रणनीतियों ने इसे फिर से “हॉट सीट” बना दिया है।

विशेषज्ञों की राय

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मधेपुरा में
50% से ज़्यादा वोटर युवा वर्ग से हैं जो पहली बार मतदान करेंगे।
यह वर्ग तय करेगा कि इस सीट का रुख किस ओर जाएगा।

इन 5 सीटों पर टिकी हैं सबकी निगाहें

2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में
ये पाँच सीटें राज्य की राजनीति की दिशा तय कर सकती हैं।
एनडीए हो या महागठबंधन, हर दल इन इलाकों को जीतने के लिए पूरी रणनीति से मैदान में उतरा है।
अब देखना होगा कि जनता किसे चुनती है और किसकी राह मुश्किल करती है।
पर इतना तय है कि बिहार की ये 5 हॉट सीटें पूरे चुनावी मौसम का केंद्र बनी रहेंगी।

Tesla ने Elon Musk पर 1 ट्रिलियन डॉलर का दांव क्यों लगाया? पूरी रिपोर्ट

Elon Musk

आप उस आदमी को क्या देंगे जिसके पास पहले से ही सब कुछ खरीदने की ताकत है? शायद 1 ट्रिलियन डॉलर!
टेस्ला के निदेशक मंडल ने यही फैसला किया है। कंपनी ने शुक्रवार को शेयरधारकों के लिए एक नया वेतन पैकेज पेश किया है, जिसके तहत सीईओ एलन मस्क को अगले 10 वर्षों में टेस्ला के लगभग 423.7 मिलियन अतिरिक्त शेयर मिल सकते हैं।

इस पैकेज की कुल अनुमानित वैल्यू करीब 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकती है, जो अब तक किसी भी कॉर्पोरेट लीडर को मिला सबसे बड़ा वेतन पैकेज माना जा रहा है।

Tesla ने मस्क को दिया अब तक का सबसे बड़ा पैकेज, शेयर वैल्यू पहुँच सकती है 1 ट्रिलियन डॉलर

टेस्ला के सीईओ एलन मस्क को दिया गया नया वेतन पैकेज दुनियाभर में सुर्खियाँ बटोर रहा है।
शुक्रवार के बंद भाव तक इस पैकेज के तहत मिलने वाले संभावित शेयरों की कीमत “केवल” 148.7 अरब डॉलर आँकी गई है।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। अगर टेस्ला के शेयरों में पैकेज के अनुमान के अनुसार तेजी आती है, तो यह कीमत बढ़कर लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकती है।

Elon Musk को खोने का डर, इसलिए Tesla ने पेश किया अब तक का सबसे बड़ा वेतन पैकेज

टेस्ला के निदेशक मंडल ने शेयरधारकों को भेजी गई अपनी आधिकारिक फाइलिंग में साफ कहा है कि कंपनी को एलन मस्क को एक ऐतिहासिक वेतन पैकेज देना होगा। बोर्ड का मानना है कि ऐसा न करने पर टेस्ला उस नेता को खोने का जोखिम उठा सकती है, जो आज ब्रांड का पर्याय बन चुका है — चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक।

Elon Musk
Elon Musk

बोर्ड का तर्क

बोर्ड ने बताया कि वेतन पैकेज पर हुई बातचीत के दौरान मस्क ने इशारा किया कि अगर उन्हें यह भरोसा नहीं मिला, तो वे अपने अन्य हितों को प्राथमिकता दे सकते हैं। इसका मतलब है कि मस्क ऐसे प्रोजेक्ट्स की ओर बढ़ सकते हैं जहाँ उन्हें और अधिक प्रभाव व नियंत्रण मिल सके।

Tesla को अंशकालिक नौकरी की तरह देख रहे हैं मस्क, राजनीति तक बढ़ाई दखल

एलन मस्क, जिन्हें टेस्ला का चेहरा और सबसे बड़ा इनोवेटर माना जाता है, अब कंपनी को पहले जैसी तवज्जो नहीं दे रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बोर्ड इस बात से खुश नहीं है कि मस्क टेस्ला को मानो एक अंशकालिक नौकरी की तरह देख रहे हैं।

अन्य कंपनियों पर फोकस

मस्क का अधिकतर ध्यान उनकी दूसरी निजी कंपनियों पर केंद्रित है:

  • SpaceX – रॉकेट और स्पेस टेक्नोलॉजी कंपनी
  • Starlink – सैटेलाइट इंटरनेट सेवा
  • xAI – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी
  • X (पूर्व ट्विटर) – सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म, जिसे मस्क ने 2022 में 44 अरब डॉलर में खरीदा था

राजनीति में बढ़ती भागीदारी

टेक्नोलॉजी के अलावा, मस्क ने अब राजनीति में भी अपनी दखल बढ़ाई है। बताया जा रहा है कि वे एक थर्ड पार्टी बनाने की योजना पर भी विचार कर रहे हैं, जिससे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ साफ झलकती हैं।

बोर्ड की चिंता

टेस्ला बोर्ड का मानना है कि मस्क का ध्यान बंटने से कंपनी के दीर्घकालिक लक्ष्यों और शेयरधारकों के हितों पर असर पड़ सकता है। हालांकि, वे अब भी मानते हैं कि मस्क में टेस्ला को नई ऊँचाइयों तक ले जाने की क्षमता मौजूद है।

बोर्ड की चेतावनी: एलन मस्क को टेस्ला से नज़रें नहीं हटाने दी जाएंगी

वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल की शुरुआत में जब एलन मस्क सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) का नेतृत्व कर रहे थे, तब टेस्ला बोर्ड ने उनके संभावित उत्तराधिकारी की तलाश शुरू कर दी थी। हालांकि, बोर्ड अध्यक्ष रॉबिन डेनहोम और मस्क, दोनों ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया।

DOGE छोड़कर टेस्ला पर वापसी

कथित खोज शुरू होने के तुरंत बाद, मस्क ने घोषणा की कि वह DOGE छोड़ देंगे और अपना अधिकांश समय दोबारा टेस्ला के संचालन में देंगे। इस फैसले ने निवेशकों और शेयरधारकों को यह संकेत दिया कि मस्क का फोकस अब फिर से टेस्ला पर होगा।

बोर्ड का सीधा संदेश

डीपवॉटर एसेट मैनेजमेंट के मैनेजिंग पार्टनर जीन मुंस्टर ने शुक्रवार को जारी एक नोट में लिखा:

“बोर्ड एलन को एक सीधा संदेश दे रहा है: ‘हम चाहते हैं कि आपका ध्यान टेस्ला पर रहे।’”

उन्होंने आगे कहा कि इस संदेश के साथ यह अप्रत्यक्ष वादा भी जुड़ा है कि मस्क को बोर्ड और शेयरधारकों की ओर से लगातार सपोर्ट मिलता रहेगा, बशर्ते उनका ध्यान टेस्ला पर ही केंद्रित रहे।

भारत-यूके विज़न 2035: भविष्य की साझेदारी के लिए नया खाका

आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री कीयर स्टार्मर द्वारा संयुक्त रूप से ‘भारत-यूके विज़न 2035’ की घोषणा की गई। यह ऐतिहासिक दस्तावेज़ आने वाले वर्षों के लिए भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच संबंधों को एक नई दिशा देने वाला है। यह विज़न न केवल दोनों देशों की साझेदारी को और मज़बूत करेगा, बल्कि इसे भविष्य के लिए तैयार भी करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह विज़न दस्तावेज़ हमारी ‘कम्प्रिहेन्सिव स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप’ में नई ऊर्जा और महत्वाकांक्षा का संचार करता है। यह दस्तावेज़ दोनों देशों के बीच सहयोग के हर क्षेत्र को छूता है—व्यापार, तकनीक, रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, नवाचार और संस्कृति से लेकर जन-जन के आपसी संपर्क तक। मुख्य बिंदु: आर्थिक सहयोग: भारत और यूके के बीच व्यापार और निवेश को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है। दोनों देशों ने मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को शीघ्र पूरा करने पर जोर दिया है, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को लाभ होगा। तकनीकी और डिजिटल साझेदारी: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), साइबर सुरक्षा, क्वांटम कंप्यूटिंग, और 5G/6G टेक्नोलॉजी में सहयोग को बढ़ावा देने की योजना बनाई गई है। रक्षा और रणनीतिक संबंध: रक्षा उत्पादन, संयुक्त सैन्य अभ्यास, समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को गहराने पर सहमति बनी है। शिक्षा और कौशल विकास: छात्रों और युवाओं के लिए अवसर बढ़ाने, विश्वविद्यालयों के बीच सहयोग, और स्किल डेवलपमेंट कार्यक्रमों में साझेदारी को प्राथमिकता दी गई है। जलवायु परिवर्तन और सतत विकास: दोनों देशों ने ग्रीन एनर्जी, जलवायु अनुकूल तकनीक और कार्बन उत्सर्जन को घटाने के लिए संयुक्त कदम उठाने पर सहमति जताई है। दोनों प्रधानमंत्रियों की साझा सोच: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विज़न को “21वीं सदी के लिए भारत-ब्रिटेन संबंधों का रोडमैप” बताया, जबकि प्रधानमंत्री कीयर स्टार्मर ने कहा कि यह दस्तावेज़ “हमारी दोस्ती की नई शुरुआत और साझेदारी को और गहराई देने का माध्यम है।” यह विज़न दोनों देशों के लोगों के लिए प्रत्यक्ष लाभ लाने का उद्देश्य रखता है — चाहे वह नौकरियों के नए अवसर हों, शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग, या जलवायु संकट से मिलकर निपटने की रणनीति। निष्कर्ष: भारत-यूके विज़न 2035 केवल एक राजनीतिक घोषणा नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक दृष्टिकोण है जो अगले दशक के लिए दोनों देशों के बीच साझेदारी को मजबूत नींव प्रदान करता है। यह कदम वैश्विक मंच पर भी दोनों देशों की भूमिका को और प्रभावशाली बनाएगा, और दो महान लोकतंत्रों को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।

BJPने समाजवादी पार्टी पर मस्जिद में ‘राजनीतिक बैठक’ करने का आरोप लगाया; समाजवादी पार्टी ने यह आरोप खारिज किया।

भाजपा नेताओं ने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, उनकी पत्नी और सांसद डिंपल यादव, पार्टी सांसद मोहीबुल्ला नदवी (जो मस्जिद के इमाम भी हैं) और अन्य लोगों की मस्जिद में बैठे हुए एक तस्वीर साझा की। भाजपा ने मस्जिद में सपा की बैठक को बताया ‘वोट बैंक की राजनीति’, अखिलेश यादव बोले- “आस्था जोड़ती है, भाजपा को सिर्फ़ नफ़रत चाहिए”23 जुलाई 2025 को भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) पर आरोप लगाया कि पार्टी ने संसद के पास स्थित एक मस्जिद में राजनीतिक बैठक की। इसआरोप के जवाब में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी सांसद डिंपल यादव ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया।BJP के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें अखिलेश यादव, डिंपल यादव, सांसद मोहिबुल्ला नदवी (जो मस्जिदके इमाम भी हैं), और अन्य लोग मस्जिद में बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं। इस तस्वीर को आधार बनाकर भाजपा ने आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी ने मस्जिद को राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। अखिलेश यादव का करारा जवाब: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा:“भाजपा का नज़रिया नकारात्मक है। आस्था सकारात्मक होती है, वो जोड़ती है। भाजपा को हर वो चीज़ बुरी लगती है जो जोड़ती है। उन्हें नफ़रत चाहिए, जबकि आस्था लोगों में भाईचारा, प्रेम और सम्मान बढ़ाती है।” डिंपल यादव ने भी स्पष्ट किया कि यह कोई राजनीतिक बैठक नहीं थी, बल्कि एक सामाजिक भेंट थी। उन्होंने कहा,“हम लोग वहां एक सामाजिक संदर्भ में गए थे, कोई बैठक नहीं थी। भाजपा इस पर बिना कारण राजनीति कर रही है।” भाजपा की प्रतिक्रिया पर उठे सवाल: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा का यह आरोप सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर इशारा करता है। सवाल यह भी उठता है कि अगर कोई राजनेता धार्मिक स्थल पर जाताहै तो क्या उसे सिर्फ धार्मिक पहचान के आधार पर राजनीतिक करार देना उचित है? सपा का रुख: समाजवादी पार्टी ने स्पष्ट किया कि मोहिबुल्ला नदवी पार्टी के सांसद हैं, और उनका मस्जिद से जुड़ा होना उनकी धार्मिक भूमिका है। लेकिन उस स्थान पर राजनीतिक चर्चा नहीं, बल्कि एक सामान्य सामाजिक संवाद हुआ था। निष्कर्ष: इस पूरे मामले ने फिर एक बार यह बहस छेड़ दी है कि क्या धार्मिक स्थलों का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है, या फिर धार्मिकता और सामाजिकता को जानबूझकर राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। जहां एक ओर भाजपा ने इसे वोट बैंक की राजनीति बताया, वहीं सपा ने इसे सामाजिक सौहार्द्र और धार्मिक आस्था से जुड़ा बताया। आप क्या सोचते हैं? क्या राजनेताओं का धार्मिक स्थलों पर जाना राजनीतिक माना जाना चाहिए, या यह उनके व्यक्तिगत अधिकार में आता है? 👇 अपनी राय नीचे कॉमेंट में दें।

Congratulations !

भाजपा नेताओं ने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, उनकी पत्नी और सांसद डिंपल यादव, पार्टी सांसद मोहीबुल्ला नदवी (जो मस्जिद के इमाम भी हैं) और अन्य लोगों की मस्जिद में बैठे हुए एक तस्वीर साझा की। भाजपा ने मस्जिद में सपा की बैठक को बताया ‘वोट बैंक की राजनीति’, अखिलेश यादव बोले- “आस्था जोड़ती है, भाजपा को सिर्फ़ नफ़रत चाहिए”23 जुलाई 2025 को भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) पर आरोप लगाया कि पार्टी ने संसद के पास स्थित एक मस्जिद में राजनीतिक बैठक की। इसआरोप के जवाब में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी सांसद डिंपल यादव ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया।BJP के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें अखिलेश यादव, डिंपल यादव, सांसद मोहिबुल्ला नदवी (जो मस्जिदके इमाम भी हैं), और अन्य लोग मस्जिद में बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं। इस तस्वीर को आधार बनाकर भाजपा ने आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी ने मस्जिद को राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। अखिलेश यादव का करारा जवाब: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा:“भाजपा का नज़रिया नकारात्मक है। आस्था सकारात्मक होती है, वो जोड़ती है। भाजपा को हर वो चीज़ बुरी लगती है जो जोड़ती है। उन्हें नफ़रत चाहिए, जबकि आस्था लोगों में भाईचारा, प्रेम और सम्मान बढ़ाती है।” डिंपल यादव ने भी स्पष्ट किया कि यह कोई राजनीतिक बैठक नहीं थी, बल्कि एक सामाजिक भेंट थी। उन्होंने कहा,“हम लोग वहां एक सामाजिक संदर्भ में गए थे, कोई बैठक नहीं थी। भाजपा इस पर बिना कारण राजनीति कर रही है।” भाजपा की प्रतिक्रिया पर उठे सवाल: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा का यह आरोप सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर इशारा करता है। सवाल यह भी उठता है कि अगर कोई राजनेता धार्मिक स्थल पर जाताहै तो क्या उसे सिर्फ धार्मिक पहचान के आधार पर राजनीतिक करार देना उचित है? सपा का रुख: समाजवादी पार्टी ने स्पष्ट किया कि मोहिबुल्ला नदवी पार्टी के सांसद हैं, और उनका मस्जिद से जुड़ा होना उनकी धार्मिक भूमिका है। लेकिन उस स्थान पर राजनीतिक चर्चा नहीं, बल्कि एक सामान्य सामाजिक संवाद हुआ था। निष्कर्ष: इस पूरे मामले ने फिर एक बार यह बहस छेड़ दी है कि क्या धार्मिक स्थलों का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है, या फिर धार्मिकता और सामाजिकता को जानबूझकर राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। जहां एक ओर भाजपा ने इसे वोट बैंक की राजनीति बताया, वहीं सपा ने इसे सामाजिक सौहार्द्र और धार्मिक आस्था से जुड़ा बताया। आप क्या सोचते हैं? क्या राजनेताओं का धार्मिक स्थलों पर जाना राजनीतिक माना जाना चाहिए, या यह उनके व्यक्तिगत अधिकार में आता है? 👇 अपनी राय नीचे कॉमेंट में दें।

भाजपा नेताओं ने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, उनकी पत्नी और सांसद डिंपल यादव, पार्टी सांसद मोहीबुल्ला नदवी (जो मस्जिद के इमाम भी हैं) और अन्य लोगों की मस्जिद में बैठे हुए एक तस्वीर साझा की। भाजपा ने मस्जिद में सपा की बैठक को बताया ‘वोट बैंक की राजनीति’, अखिलेश यादव बोले- “आस्था जोड़ती है, भाजपा को सिर्फ़ नफ़रत चाहिए” 23 जुलाई 2025 को भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) पर आरोप लगाया कि पार्टी ने संसद के पास स्थित एक मस्जिद में राजनीतिक बैठक की। इस आरोप के जवाब में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी सांसद डिंपल यादव ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया। BJP के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें अखिलेश यादव, डिंपल यादव, सांसद मोहिबुल्ला नदवी (जो मस्जिद के इमाम भी हैं), और अन्य लोग मस्जिद में बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं। इस तस्वीर को आधार बनाकर भाजपा ने आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी ने मस्जिद को राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। अखिलेश यादव का करारा जवाब: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा: “भाजपा का नज़रिया नकारात्मक है। आस्था सकारात्मक होती है, वो जोड़ती है। भाजपा को हर वो चीज़ बुरी लगती है जो जोड़ती है। उन्हें नफ़रत चाहिए, जबकि आस्था लोगों में भाईचारा, प्रेम और सम्मान बढ़ाती है।” डिंपल यादव ने भी स्पष्ट किया कि यह कोई राजनीतिक बैठक नहीं थी, बल्कि एक सामाजिक भेंट थी। उन्होंने कहा, “हम लोग वहां एक सामाजिक संदर्भ में गए थे, कोई बैठक नहीं थी। भाजपा इस पर बिना कारण राजनीति कर रही है।” भाजपा की प्रतिक्रिया पर उठे सवाल: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा का यह आरोप सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर इशारा करता है। सवाल यह भी उठता है कि अगर कोई राजनेता धार्मिक स्थल पर जाता है तो क्या उसे सिर्फ धार्मिक पहचान के आधार पर राजनीतिक करार देना उचित है? सपा का रुख: समाजवादी पार्टी ने स्पष्ट किया कि मोहिबुल्ला नदवी पार्टी के सांसद हैं, और उनका मस्जिद से जुड़ा होना उनकी धार्मिक भूमिका है। लेकिन उस स्थान पर राजनीतिक चर्चा नहीं, बल्कि एक सामान्य सामाजिक संवाद हुआ था। निष्कर्ष: इस पूरे मामले ने फिर एक बार यह बहस छेड़ दी है कि क्या धार्मिक स्थलों का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है, या फिर धार्मिकता और सामाजिकता को जानबूझकर राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। जहां एक ओर भाजपा ने इसे वोट बैंक की राजनीति बताया, वहीं सपा ने इसे सामाजिक सौहार्द्र और धार्मिक आस्था से जुड़ा बताया। आप क्या सोचते हैं? क्या राजनेताओं का धार्मिक स्थलों पर जाना राजनीतिक माना जाना चाहिए, या यह उनके व्यक्तिगत अधिकार में आता है?