भाजपा नेताओं ने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, उनकी पत्नी और सांसद डिंपल यादव, पार्टी सांसद मोहीबुल्ला नदवी (जो मस्जिद के इमाम भी हैं) और अन्य लोगों की मस्जिद में बैठे हुए एक तस्वीर साझा की। भाजपा ने मस्जिद में सपा की बैठक को बताया ‘वोट बैंक की राजनीति’, अखिलेश यादव बोले- “आस्था जोड़ती है, भाजपा को सिर्फ़ नफ़रत चाहिए”23 जुलाई 2025 को भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) पर आरोप लगाया कि पार्टी ने संसद के पास स्थित एक मस्जिद में राजनीतिक बैठक की। इसआरोप के जवाब में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी सांसद डिंपल यादव ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया।BJP के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें अखिलेश यादव, डिंपल यादव, सांसद मोहिबुल्ला नदवी (जो मस्जिदके इमाम भी हैं), और अन्य लोग मस्जिद में बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं। इस तस्वीर को आधार बनाकर भाजपा ने आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी ने मस्जिद को राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। अखिलेश यादव का करारा जवाब: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा:“भाजपा का नज़रिया नकारात्मक है। आस्था सकारात्मक होती है, वो जोड़ती है। भाजपा को हर वो चीज़ बुरी लगती है जो जोड़ती है। उन्हें नफ़रत चाहिए, जबकि आस्था लोगों में भाईचारा, प्रेम और सम्मान बढ़ाती है।” डिंपल यादव ने भी स्पष्ट किया कि यह कोई राजनीतिक बैठक नहीं थी, बल्कि एक सामाजिक भेंट थी। उन्होंने कहा,“हम लोग वहां एक सामाजिक संदर्भ में गए थे, कोई बैठक नहीं थी। भाजपा इस पर बिना कारण राजनीति कर रही है।” भाजपा की प्रतिक्रिया पर उठे सवाल: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा का यह आरोप सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर इशारा करता है। सवाल यह भी उठता है कि अगर कोई राजनेता धार्मिक स्थल पर जाताहै तो क्या उसे सिर्फ धार्मिक पहचान के आधार पर राजनीतिक करार देना उचित है? सपा का रुख: समाजवादी पार्टी ने स्पष्ट किया कि मोहिबुल्ला नदवी पार्टी के सांसद हैं, और उनका मस्जिद से जुड़ा होना उनकी धार्मिक भूमिका है। लेकिन उस स्थान पर राजनीतिक चर्चा नहीं, बल्कि एक सामान्य सामाजिक संवाद हुआ था। निष्कर्ष: इस पूरे मामले ने फिर एक बार यह बहस छेड़ दी है कि क्या धार्मिक स्थलों का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है, या फिर धार्मिकता और सामाजिकता को जानबूझकर राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। जहां एक ओर भाजपा ने इसे वोट बैंक की राजनीति बताया, वहीं सपा ने इसे सामाजिक सौहार्द्र और धार्मिक आस्था से जुड़ा बताया। आप क्या सोचते हैं? क्या राजनेताओं का धार्मिक स्थलों पर जाना राजनीतिक माना जाना चाहिए, या यह उनके व्यक्तिगत अधिकार में आता है? 👇 अपनी राय नीचे कॉमेंट में दें।
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भाजपा नेताओं ने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, उनकी पत्नी और सांसद डिंपल यादव, पार्टी सांसद मोहीबुल्ला नदवी (जो मस्जिद के इमाम भी हैं) और अन्य लोगों की मस्जिद में बैठे हुए एक तस्वीर साझा की। भाजपा ने मस्जिद में सपा की बैठक को बताया ‘वोट बैंक की राजनीति’, अखिलेश यादव बोले- “आस्था जोड़ती है, भाजपा को सिर्फ़ नफ़रत चाहिए”23 जुलाई 2025 को भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) पर आरोप लगाया कि पार्टी ने संसद के पास स्थित एक मस्जिद में राजनीतिक बैठक की। इसआरोप के जवाब में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी सांसद डिंपल यादव ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया।BJP के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक तस्वीर साझा की, जिसमें अखिलेश यादव, डिंपल यादव, सांसद मोहिबुल्ला नदवी (जो मस्जिदके इमाम भी हैं), और अन्य लोग मस्जिद में बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं। इस तस्वीर को आधार बनाकर भाजपा ने आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी ने मस्जिद को राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। अखिलेश यादव का करारा जवाब: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा:“भाजपा का नज़रिया नकारात्मक है। आस्था सकारात्मक होती है, वो जोड़ती है। भाजपा को हर वो चीज़ बुरी लगती है जो जोड़ती है। उन्हें नफ़रत चाहिए, जबकि आस्था लोगों में भाईचारा, प्रेम और सम्मान बढ़ाती है।” डिंपल यादव ने भी स्पष्ट किया कि यह कोई राजनीतिक बैठक नहीं थी, बल्कि एक सामाजिक भेंट थी। उन्होंने कहा,“हम लोग वहां एक सामाजिक संदर्भ में गए थे, कोई बैठक नहीं थी। भाजपा इस पर बिना कारण राजनीति कर रही है।” भाजपा की प्रतिक्रिया पर उठे सवाल: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा का यह आरोप सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर इशारा करता है। सवाल यह भी उठता है कि अगर कोई राजनेता धार्मिक स्थल पर जाताहै तो क्या उसे सिर्फ धार्मिक पहचान के आधार पर राजनीतिक करार देना उचित है? सपा का रुख: समाजवादी पार्टी ने स्पष्ट किया कि मोहिबुल्ला नदवी पार्टी के सांसद हैं, और उनका मस्जिद से जुड़ा होना उनकी धार्मिक भूमिका है। लेकिन उस स्थान पर राजनीतिक चर्चा नहीं, बल्कि एक सामान्य सामाजिक संवाद हुआ था। निष्कर्ष: इस पूरे मामले ने फिर एक बार यह बहस छेड़ दी है कि क्या धार्मिक स्थलों का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है, या फिर धार्मिकता और सामाजिकता को जानबूझकर राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। जहां एक ओर भाजपा ने इसे वोट बैंक की राजनीति बताया, वहीं सपा ने इसे सामाजिक सौहार्द्र और धार्मिक आस्था से जुड़ा बताया। आप क्या सोचते हैं? क्या राजनेताओं का धार्मिक स्थलों पर जाना राजनीतिक माना जाना चाहिए, या यह उनके व्यक्तिगत अधिकार में आता है? 👇 अपनी राय नीचे कॉमेंट में दें।
